यादे भी बोझ बनने लगी
और वादे, जंजीरे
गिरने लगी हर दिवार
घिरने लगे अंधेरे
मीट गई हर वो निशानी
जो लगती थी अपनीसी
कटने लगे वो पेड
जो देते थे साया, सुकुन
सुरज भी बुझ सा गया है
ना कोई उजाला, ना गर्मी
एक कोहरा चारो ओर
धरतीको लपेटे हुए
कयामत का मंझर है शायद
एक शुरुवात, अंत की
जुडने लगा हिसाब, जिंदगीका
तय् हुवा सफर, सिफर से सिफर तक का
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